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नमामि विठ्ठलेश्वरं सदात्युदार मानसं।
स्वभक्तरक्षणक्षमं व्रजेश भक्तिभावदं॥

द्वितीय गृह निधि प्रभु श्रीविठ्ठलनाथजीकी का  श्लोक:

सर्वात्माना प्रपन्नानां गोपीनां पोषयन् मनः l
तं वंदे विट्ठलाधीशं गौरश्यामं प्रियान्वितम् ll

भावार्थ –
संपूर्ण अनन्य भावपूर्वक शरण में आये गोपीजनों के मन का पोषण करने वाले श्रीस्वामिनीजी सहित विराजित गौरश्याम स्वरुप श्री विट्ठलनाथजी प्रभु को मैं वंदन करता हुँ।

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